Aaj ka shabd hai koti sohanlal dwivei best hindi poem gad gai jidhar bhi ek drishti – Amar Ujala Kavya – Today’s word: Today’s poetry: Koti and Sohanlal Dwivedi’s poem

Aaj ka shabd hai koti sohanlal dwivei best hindi poem gad gai jidhar bhi ek drishti – Amar Ujala Kavya – Today’s word: Today’s poetry: Koti and Sohanlal Dwivedi’s poem
                
                                                         
                            'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- कोटि, जिसका अर्थ है- धनुष का सिरा, उत्कृष्टता, करोड़, समूह। प्रस्तुत है सोहनलाल द्विवेदी की कविता- गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
                                                                 
                            

चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर ;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर,

जिसके शिर पर निज हाथ धरा
उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
झुक गए उसी पर कोटि माथ ;

हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु
हे कोटि रूप, हे कोटि नाम !
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम !

युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख
युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,
तुम अचल मेखला बन भू की
खीचते काल पर अमिट रेख ;

तुम बोल उठे युग बोल उठा
तुम मौन रहे, जग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर
युगकर्म जगा, युगधर्म तना ;

युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक
युग संचालक, हे युगाधार !
युग-निर्माता, युग-मूर्ति तुम्हें
युग युग तक युग का नमस्कार !

दृढ़ चरण, सुदृढ़ करसंपुट से
तुम काल-चक्र की चाल रोक,
नित महाकाल की छाती पर
लिखते करुणा के पुण्य श्लोक !

हे युग-द्रष्टा, हे युग सृष्टा,
पढ़ते कैसा यह मोक्ष मन्त्र ?
इस राजतंत्र के खण्डहर में
उगता अभिनव भारत स्वतन्त्र !

5 hours ago

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